Sunday, April 17, 2011

दिल का दर्द

रिस्तो को कैसे रखते है ख्याल लोग,
आज तो कुछ अलग - अलग तरीके से जानते है
हमें तो सब गाली आपना हक़ समझ के देते है जैसे हम बिहार में पैदा हो के भारत के लिए कलंक है

आज मुझे बिहारी होने पर एक गाली सी लगता है " एक परिवार राजस्थान के जयपुर शहर से 100 किलोमीटर दिल्ली की ओर कोटपुतली में रहते है उनकी कहानी बहुत ही गन्दा है, जो समाज को गन्दा कर देगी लेकिन हम क्या कर सकते उनकी गलती की सजा हमें मिलती है परिवार में पति - पत्नी और पति का बड़ा भाई साथ में रहते है ये इतनी मिल झूल के रहते थे की किसी को ये पता नहीं था की दोनों भाइयो में बड़ा कोन है ये औरत किसकी पत्नी है जब भी किसी ने इस औरत से पूछा आपका पति कोन है तो उसने हर बार गलत बताया , आपने पति को जेठ और जेठ को पति येसा इसलिए हो पाया क्योकि दोनों भाई की नौकरी है एक की रात की , तो दुसरे भाई की दिन में इसका परिणाम बहुत ही बुरा हुआ बड़े भाई की शादी के लिए रिश्ता आया लेकिन छोटे भाई की बीबी ने फ़ोन पे उस लड़की को बोली की तुम इससे शादी नहीं कर सकती वो मेरा है जब ये बात उसके पति को पता चला तो "उसके पांव के निचे से जमीन निकल गया" और उसी दिन वो घर छोड़ के भाग गयी, और उसके साथ भागा बड़ा भाई ॥
ये घटना मेरे दोस्त के पड़ोस वाले घर में घटी है मै आपने दोस्त से बात किया तो उसने बतायी की ये परिवार बिहारी है, मेरी दोस्त जानती है कि मै भी बिहारी हूँ उस समय से बिहारी कहलाने में गन्दी गाली से कम नहीं लग रहा है ,मै आपने दोस्त से उस समय बात नहीं कर पा रहा था ,पहले भी कुछ बिहारियों कि गलत काम के चलते
हमे आज गाली सुनाने को मिलता है
1) आज के दिन में कोई शराब पिके नाली में गिरा है तो 50% आदमी बोलते है साला बिहारी है और क्या पता कोन है ?
2) यदि कोई गन्दा काम कर गया और उसे किसी ने नहीं देखा तो 99% आदमी बोलते है कोई बिहारी होगा
3) जब मै कॉलेज में पढ़ रहा था उस समय भी मेरे नाम से बुलाते थे और जैसे ही मै वह से चला जाता उसके बात बिहारी शब्द बहुत ही प्यार से लेते थे
4) मेरे जानने वाले ही जो दुसरे राज्य के है वो भी कभी कभी बोल जाते है मेरे सामने वो साला बिहारी एसे किया

ये सारी बाते तो बहुत ही कम है
मेरा दर्द मुझे बिहारी क्यों बोलते है लोग , हम ने किसी को आज तक उसके राज्य के नाम के साथ नहीं बोला ...
मै अपनी ओर से पूरी कोशिश कर करता हूँ कि मेरे से कोई गलत काम न हो जाए किसी को कुछ गलत न बोल दू

एक आदमी कि गलती कि सजा पूरी समाज को दे सकते है क्या ?
लेकिन मै क्या कर सकता हु ? करना तो आप सबको है .......सुरेन्द्र

Saturday, January 30, 2010

श्रद्धांजलि स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को पुरे झारखण्ड वासियों की और से ...........सुरेन्द्र


बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता और एक लोक नायक थे , मुंडा जनजाति जो सहस्राब्दवादी आंदोलन है कि आधुनिक दिन बिहार के आदिवासी बेल्ट में गुलाब के पीछे से संबंधित थे , और झारखंड ब्रिटिश राज के दौरान.

सबसे बड़ा आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी में से एक बिरसा मुंडा वर्ष 1875 में पैदा हुए, 15 नवंबर को किया गया, Jharkahand की वर्तमान रांची जिले में,एक गरीबी ग्रस्त परिवार में जन्मे, बिरसा अपने आदिवासी भाइयों और बहनों पर अत्याचार और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दमन के खिलाफ आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व किये .

एक दूरदर्शी और महान fredom सेनानी, बिरसा अपने felllow आदिवासियों को बाहर meted अन्याय देखे है. वह उन्हें एक समूह में संगठित और गैर आदिवासियों की जमीन कब्जाने सशक्त-आदिवासियों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किये और फिर देश के शासक-अंग्रेजों के खिलाफ अपने आंदोलन के लिए बने बंधुआ मजदूरों से अपने साथी आदिवासियों को रोकने के लिए और अपनी संपत्ति के शोषण की जांच करना थी .बिरसा प्रेरित आदिवासियों को उनकी समृद्ध संस्कृति और संस्कारों का पालन करने को कहे और उन्हें किसी भी दबाव में हिलता नहीं है.

बिरसा एक दूरदर्शी जो आदिवासी है, जो देश के आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी आंदोलन को जन्म दिए बीच क्रांति के बीज देखे थे .अपने आंदोलन भी जमींदार और अन्य पैसे उधारदाताओं जो सभी प्रकार के शोषण में लिप्त थे और जमीन आदिवासियों की संपत्ति हड़पने के खिलाफ निर्देश में आदेश उन्हें श्रम बंधुआ बनाने के लिए थे .वह अपने साथी आदिवासियों को कहा साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने और अपने स्वयं के शासन की स्थापना.उनके आंदोलन को एक छतरी के तहत आदिवासियों के हजारों लाया और वन भूमि पर उनका अधिकार है, जो था इस्तेमाल किया गया है और प्राचीन समय से उनके पूर्वजों द्वारा tilled पाने में आदिवासियों की मदद की.

ऐसे समय में जब ब्रिटिश शासन के एक आतंकवादी था, वह वन के बकाया छूट के लिए विरोध मार्च और आंदोलन का आयोजन किये अपने छोटे जीवन के दौरान उन्होंने जो भी कम किये कोई बहुत लंबे जीवन में नहीं कर सकता था.

वह 25 साल पर अपने कर्मों और आंदोलन के एक बहुत ही कम उम्र में मर गए ! अंग्रेजों की जड़ों को तोड़ दिया,अपने आंदोलन Chhotanagpur काश्तकारी अधिनियम, 1908 के प्रचार के लिए औपनिवेशिक सरकार को मजबूर किया,इस अधिनियम के आदिवासियों द्वारा अनुभवी भेदभाव के खिलाफ अपने संघर्ष को समर्पित का परिणाम था.

आजादी के संघर्ष में उनके योगदान को देखते हुए वह धरती Abba के रूप में जाना जाता है.भारत government , संसद के परिसर में उनकी स्मृति में एक मूर्ति समर्पित है.यह भी प्रासंगिक कानूनों को लागू किया गया है और कार्यान्वित आदिवासियों के हित में नीतियां. इस के लावा, कई प्रमुख शैक्षिक उसके नाम पर देश भर में functioniung संस्थानों रहे हैं.हम सलामी हमारी माँ देश के इस महान अपने देशवासियों के हित में अपने निस्वार्थ बलिदान के लिए बेटा.

Friday, January 29, 2010

हजारीबाग एक परिचय मेरे नजर में ......सुरेन्द्र


हजारीबाग राष्ट्रीय उद्यान झारखंड के नवगठित राज्य में है. 184 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले अभयारण्य और 615 मीटर की ऊंचाई पर है इलाके उष्णकटिबंधीय और घने जंगलों और घास Meadows के साथ खड़ी पहाड़ियां हैं.
हजारीबाग राष्ट्रीय उद्यान चीतल, नीलगाउ, पैंथर, सांभर, आलसी Bear, बाघ और जंगली भालू की तरह प्रचुर मात्रा में जंगली जानवर है. कक्कड़ Cheetal, नीलगाउ, सांभर और जंगली भालू सबसे आसानी से और अक्सर खासकर शाम के समय waterholes के पास पशुओं देखा में से एक हैं. बाघों की आबादी बहुत कम है. 1991 की जनगणना के मुताबिक, पार्क में 14 बाघ थे. बाघों की दृष्टि से बहुत मुश्किल है.
एक 111-अभयारण्य में सड़क के किलोमीटर लंबे मार्ग दूरस्थ कोनों और पार्क की चिनाई टावरों के लिए पर्यटकों को ले जाता है. विचार के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करता है. आदिवासी आबादी भी अभयारण्य के आसपास रहता है. सन्दूक कई watchtowers कि अधिनियम के रूप में सही ठिकाने अपने प्राकृतिक परिवेश में वन्य जीवन को देखने के लिए है.

पलामू वन रिजर्व इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य है. पर्यटकों Canari हिल यात्रा है, जो पार्क से 15 किलोमीटर की दूरी पर है भ्रमण पर्यटन Rajrappa Falls और सूरज कुंड गर्म पानी के झरने, 89 किमी और 72 किमी क्रमशः की दूरी पर स्थित है.

Wednesday, January 27, 2010

झारखण्ड के निवासी की आर्थिक स्थिति बहुत ही .......ख़राब हो गया है कुछ सालो में

मूल वासियों का शोषण नहीं रूका तो झारखंड में स्थिति विस्फोटक हो सकती है

बिहार के छोटानागपुर पठार और संथाल परगना इलाके को मिलाकर वर्तमान झारखंड राज्य का गठन किया गया। राज्य का क्षेत्रफल है लगभग 1.90 लाख किलोमीटर और 1981 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या एक करोड़ अस्सी लाख। आज की तारीख में राज्य की संख्या है लगभग दो करोड़ 75 लाख। राज्य पहाड़-पठार, नदी-झरने और समतल मैदान सहित घने जंगल से भरा पड़ा है।



दुनिया भर के महत्वपूर्ण खनिज यहां पाये जाते हैं। विभिन्न प्रकार के कल-कारखाने को स्थापित करने के अलावा बड़े पैमाने पर बिजली पैदा करने की क्षमता भी है।झारखंड पर विस्तार से नजर डालने से पहले इसके इतिहास पर भी एक नजर डालना लाजमी होगा। आजादी से पहले पूरे झारखंड इलाके के मूल वासी को आदिवासी माना जाता था। जैसा कि सूचि में दर्ज है। उस समय के हिसाब से झारखंड का जो इलाका था उसमें बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा भी शामिल था।

आजादी से पहले जब इस इलाके का सर्वे किया जा रहा था तब यहां कई समुदायों को मूल आदिवासी माना गया। इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा एच एच रिजले का।इनके सर्वे का नोटिफिकेशन प्रकाशित किया, ब्रिटिश सरकार ने 1913 में। इसके बाद मानव विज्ञान के ज्ञाता डब्ल्यू.जी. लेसी ने एक सर्वे किया जिसकी रिपोर्ट प्रकाशित की गई 1931 में। इस रिपोर्ट के अनुसार तेरह समुदाय को यहां का मूल वासी घोषित किया गया जो यहीं के हैं। जिनका यहां के जमीन पर मूल अधिकार है।इन्ही समुदायों में से एक कुडमी महतो, जिन्हें आजकल कुर्मी- महतो कहा जाता है, उनकी जनसंख्या अकेले पूरे राज्य की संख्या के लगभग 25% है। 2001 की जनगणना के अनुसार बाकि आदिवासी समुदाय जो 31 प्रजातियों में बंटा हुआ है उनकी संख्या 26% है। बहरहाल, आजादी के बाद कुर्मी महतो का नाम आदिवासी सूचि से हटाकर पिछड़े वर्ग की सूचि में डाल में दिया। ऐसा कुछ और समुदाय के साथ भी हुआ वो भी बिना किसी नोटिफिकेशन के और बिना कारण के।झारखंड के मूल वासियों की जीवन मुलत: खेती और जंगल पर निर्भर है। यहां के मूल वासी आज भी पांरिपरिक तरीके से जीवन यापन करते हैं।
यहां की मुख्य फसल धान है। यहां के झरने-नदियां कल कारखानो के कारण प्रदूषित हो चुकी है। राज्य की जनसंख्या को मुख्यत: दो भागों में बांटा जा सकता है - मूलवासी और बाहर से आकर बसे हुए लोग। मूल वासी को विभाजित किया जा सकता है आदिवासी समुदाय(26 प्रतिशत), दलित समुदाय(10 प्रतिशत), पिछडा वर्ग और सामान्य वर्ग में। बाहर से आकर बसे हुए लोगों की संख्या मुश्किल से लगभग 20 प्रतिशत है। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार की नौकरियों के अलावा व्यापार और हर प्रकार की आर्थिक गतिविधियों पर बाहर से आये हुए लोगों का हीं कब्जा है। यहां के जो मूल वासी है वे पूरी तरह शोषित हैं। उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है।झारखंड आंदोलन -बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि झारखंड आंदोलन की शुरूवात बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में शुरू हुई। लेकिन इसका दायरा बहुत ही सीमित था। वो भी आदिवासी समुदाय के बीच। बाद में इसके दायरे को बढाया गया।

यह आंदोलन सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और राजनीति शोषण के खिलाफ शुरू हुई। बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने यहां के मूल वासियों का जबरदस्त शोषण किया।आजादी के बाद केन्द्र सरकार ने झारखंड अलग राज्य की मांग को खारीज कर दिया। क्योंकि पुनर्गठन राज्य आयोग के सामने अलग राज्य की मांग को लेकर एक गलत रिपोर्ट रखी गई था। बाद में उस समय के झारखंड नेता जयपाल सिंह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये 1963 में। 1956 से लेकर 1970 तक झारखंड आंदोलन छिन्न भिन्न हो गया।इस बीच 1968 में बिनोद बिहारी के नेतृत्व में “ शिवाज समाज” का गठन हुआ।

बिहारी महतो एक वकील होने के साथ साथ शिक्षाविद् और समाज सेवक भी थे। यह संगठन कुर्मी महतो समाज का एक सामाजिक संस्था था झारखंड इलाके में। इसके बाद वहां जो समाज शोषित था उनलोगों ने भी विनोद बिहारी महतो जी से प्रेरणा लेते हुए सामाजिक संगठन बनाये। इसी क्रम में शिबू सोरेन ने भी संथाल समाज को उपर लाने की मकसद से ‘सोनोत संथाल समाज’ का गठन किया।आपातकाल लागू होने से कुछ साल पहले 1973 में शिवाजी समाज और सोनोत संथाल को मिलाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया बिनोद बिहारी के नेतृत्व में। श्री महतो इसके संस्थापक अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन महासचिव। पार्टी का नाम झारखंड मुक्तो मोर्चा होगा यह सुझाव मैंने हीं दिया था। मैं बिनोद बिहारी महतो का ज्येष्ठ पुत्र हूं।झारखंड आंदोलन को नया जीवन दिया राजीव गांधी ने -यह सच्चाई है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने झारखंड आंदोलन को एक नया जीवन दे दिया 1989 में। जब उन्होंने अलग राज्य के मसले पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया –‘ The Committee on Jharkhand Matters’। इस समिति ने मई 1990 में एक रिपोर्ट केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सामने रखी जो झारखंड आंदोलन के इतिहास में टर्निंग पॉइन्ट सिद्ध हुआ।दुर्भाग्यवश राजीव गांधी जी की हत्या हो गई मई 1991 में। फिर नरसिंह राव जी प्रधानमंत्री बने और झारखंड अलग राज्य मामले में बिनोद बिहारी महतो(सांसद गिरिडीह) के साथ बातचीत की। झामुमो के सभी सांसद भी थे। लेकिन राव साहब ने बातचीत के दौरान केन्द्रीय सरकार को समर्थन देने की बात की।

इस पर बिनोद बाबू तैयार हुए एक शर्त के साथ वो था कि अगर कांग्रेस पार्टी राजी होती है कि वो अलग झारखंड राज्य देने को तैयार है तब।बिनोद बाबू के निधन से आंदोलन को झटका -दुर्भाग्यवश मेरे पिताजी बिनोद बिहारी महतो जी का निधन( 18-12-1991) हो गया। यह झारखंड आंदोलन के लिए एक जोरदार झटका था। आंदोलन को भारी धक्का लगा। इसके बाद मै राजनीति में सक्रिय रूप से आया। पिताजी के निधन से खाली गिरिडीह लोक सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव(11-05-1992) में मैं विजयी रहा।शिबू सोरेन झामुमो के अध्यक्ष बने। और पार्टी को एक तानाशाह के रूप में चलाने लगे। इतना ही उन्होंने अलग वृहद झारखंड राज्य की मांग को भी छोड़ दिया। और सिर्फ बिहार के हिस्से वाले झारखंड इलाके में स्वतंत्र परिषद के लिए राजी हो गये।

परिषद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को समर्थन देने के मुद्दे पर झामुमो दो भागों में विभाजित हो गई। मैं कांग्रेस के खिलाफ लालू यादव जी को समर्थन दिया वहीं शिबू सोरेन ने लालू की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। शिबू सोरेन के साथ चार सांसद और 9 विधायक थे। दूसरी ओर झामुमो मार्डी के साथ दो सांसद और 9 विधायक रहे। कृष्णा मार्डी झामुमो(मार्डी) के अध्यक्ष बने और मैं महासचिव।झामुमो(मार्डी) के जबरदस्त विरोध और आंदोलन के बावजूद 24 दिसंबर 1994 को आदिवासी परिषद का गठन किया गया। इसे लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के अलावा भाजपा, वामपंथी और अन्य दलों का समर्थन प्राप्त था। प्रावधान ऐसा किया गया कि आदिवासी परिषद का अध्यक्ष आदिवासी हीं होगा। कुर्मी-महतो समुदाय को पूरी तरह नकार दिया गया जबकि झारखंड आंदोलन के लिए महतो समुदाय के अनेको लोग शहीद हुए और कुर्बानियां दी।

Wednesday, December 3, 2008

wellcome

well come to my blog...............................